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Thursday, June 28, 2012

जीवन और गुरु अविभाजिनीय है !!!

गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर श्री श्री की वार्ता 


१.आपका स्वयं का जीवन ही आपका गुरु होता हैं |

२. जीवन और गुरु अविभाजिनीय है| यह कोई नर्सरी शिक्षक के जैसे नहीं है,कि आप उनसे कुछ सीखा और फिर आप चले गए परन्तु जीवन और गुरु अविभाजिनीय है |


३. जीवन का ज्ञान ही आपका गुरु है | अपने जीवन पर प्रकाश डालने से ज्ञान का उदय होता है |


४.देने वाले ने आपको प्रचुरता के साथ दिया है और वह आपको देता ही रहता हैं और आप उसका अच्छा उपयोग कीजिये | आप अपने कौशल और योग्यता  का जितना अच्छा उपयोग करेंगे उतना ही आपको और  अधिक प्राप्त होगा |


५. ज्ञान का सम्मान करे | ज्ञान का सम्मान इसलिए करना चाहिये क्योंकि गुरु और ज्ञान अविभाजिनीय है और जीवन और ज्ञान को भी अविभाजिनीय होना चाहिये | कई बार आप अपना जीवन ज्ञान बिना जीते है | फिर गुरु तत्व मौजूद नहीं रहता | और आप गुरु का सम्मान नहीं करते | समझ में आया क्या ?
वह सतगुरू है |


६. जब आप सच्चाई और धर्म की राह पर रहे और  उस पर होने का दावा न करे |



 सच्चाई और धर्म की राह पर होने का दावा करने से क्रोध, और निराशा आती है और आप किसी और रूप में गलत बन जाते है | यह अच्छाई के साथ भी है | जब आप सोचते है कि ‘ मैं अच्छा हूं फिर आपको लगता हैं कि दुसरे लोग बुरे है, और आप दूसरों को बुरा बना देते हैं | जब आप सोचते हैं कि मैं बहुत अच्छा हूं , तो इससे आप में उदासी आती है | जो लोग सोचते कि वे बहुत अच्छे है वे उन लोगों की तुलना में दुखी होते है जो यह सोचते है कि वे बुरे हैं |जो लोग सोचते है कि वे बुरे है, वे परवाह नहीं करते लेकिन यदि कोई सोचता है कि वह बहुत अच्छा है तो वह यह सोचने लगता है कि उसे क्या हो रहा है | इसलिए यदि आप सोचते है कि ‘मैं  अच्छा हूं’ और उसका दावा करने से आप दुखी और निराश हो जाते है | अपनी अच्छाई का दावा करने से आप क्रोधित हो जाते है | आप कितने भी अच्छे हो परन्तु उसका दावा न करे | दूसरों को उसके बारे में बोलने दीजिए, और उसका ढिंढोरा न पीटे | उदार रहे और उदारता का दिखावा न करे | 

आप सब को यह सब करना है  और इन सभी बातों को बार बार इकट्ठा हुए इसे अपने बुद्धि में समाना हैं | यहीं सत्संग होता है | सत्संग सत्य, विवेक और आपके भीतर के ज्ञान की संगति होती है |  आपका परिचय  अपने भीतर के सत्य के होता है और यहीं सत्संग होता है |


Thursday, June 21, 2012

गुरु

प्रश्न : क्या गुरु चुनने से पहले गुरु दीक्षा लेनी आवश्यक होती है?

श्री श्री रविशंकर : आपको गुरु चुनने की कोई ज़रूरत नहीं है| आप जीवन में जो भी अच्छी बातें सीखते हैं और जहाँ से भी सीखते हैं, उन सबमें गुरु तत्व मौजूद है|
आपकी माँ आपकी प्रथम गुरु है| जैसे जैसे आप बड़े होते हैं, आपको शिक्षा देने वाले गुरु मिलते हैं| इसी तरह, जीवन के हर मोड़ पर आपके जीवन में एक गुरु होते हैं| गुरु तत्व तो हमेशा आपके साथ रहता है| तो जब भी आपके मन को लगता है, कि हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए कोई हमारी सहायता कर रहा है, इसका मतलब कि गुरु तत्व मौजूद है|

प्रश्न : ऐसा कहा जाता है कि हमें ‘राहु-काल’ के समय कोई पूजा नहीं करनी चाहिये| लेकिन फिर भी आश्रम में हमारा रविवार का सत्संग क्यों हमेशा राहु-काल में ही होता है?
श्री श्री रविशंकर : ऐसा नहीं कहा गया है, कि राहु-काल के समय हमें कोई पूजा नहीं करनी चाहिये| बल्कि, राहु-काल के समय पूजा करना तो शुभ माना जाता है| हाँ, शादियाँ और गृह-प्रवेश इस समय नहीं करना चाहिये|
केवल इतना ही कहा गया है, कि हमें कोई सांसारिक कार्य इस समय नहीं करने चाहिये; यह नहीं कि इस समय भगवान को याद नहीं कर सकते, या सत्संग नहीं कर सकते| बल्कि, राहु-काल में सत्संग करना अच्छा रहता है|
ग्रहण और राहु-काल के समय सत्संग करना अच्छा होता है| सत्संग करने के लिए तो हर समय अच्छा होता है| दूसरे लोगों की मदद करने के लिए, और भगवान को याद करने के लिए हमें किसी शुभ समय की ज़रूरत नहीं है| इसके लिए तो चौबीसों-घंटे बढ़िया होते हैं|

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