गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर श्री श्री की वार्ता
१.आपका स्वयं का जीवन ही आपका गुरु होता हैं |
२. जीवन और गुरु अविभाजिनीय है| यह कोई नर्सरी शिक्षक के जैसे नहीं है,कि आप उनसे कुछ सीखा और फिर आप चले गए परन्तु जीवन और गुरु अविभाजिनीय है |
३. जीवन का ज्ञान ही आपका गुरु है | अपने जीवन पर प्रकाश डालने से ज्ञान का उदय होता है |
४.देने वाले ने आपको प्रचुरता के साथ दिया है और वह आपको देता ही रहता हैं और आप उसका अच्छा उपयोग कीजिये | आप अपने कौशल और योग्यता का जितना अच्छा उपयोग करेंगे उतना ही आपको और अधिक प्राप्त होगा |
५. ज्ञान का सम्मान करे | ज्ञान का सम्मान इसलिए करना चाहिये क्योंकि गुरु और ज्ञान अविभाजिनीय है और जीवन और ज्ञान को भी अविभाजिनीय होना चाहिये | कई बार आप अपना जीवन ज्ञान बिना जीते है | फिर गुरु तत्व मौजूद नहीं रहता | और आप गुरु का सम्मान नहीं करते | समझ में आया क्या ?
वह सतगुरू है |
६. जब आप सच्चाई और धर्म की राह पर रहे और उस पर होने का दावा न करे |
सच्चाई और धर्म की राह पर होने का दावा करने से क्रोध, और निराशा आती है और आप किसी और रूप में गलत बन जाते है | यह अच्छाई के साथ भी है | जब आप सोचते है कि ‘ मैं अच्छा हूं फिर आपको लगता हैं कि दुसरे लोग बुरे है, और आप दूसरों को बुरा बना देते हैं | जब आप सोचते हैं कि मैं बहुत अच्छा हूं , तो इससे आप में उदासी आती है | जो लोग सोचते कि वे बहुत अच्छे है वे उन लोगों की तुलना में दुखी होते है जो यह सोचते है कि वे बुरे हैं |जो लोग सोचते है कि वे बुरे है, वे परवाह नहीं करते लेकिन यदि कोई सोचता है कि वह बहुत अच्छा है तो वह यह सोचने लगता है कि उसे क्या हो रहा है | इसलिए यदि आप सोचते है कि ‘मैं अच्छा हूं’ और उसका दावा करने से आप दुखी और निराश हो जाते है | अपनी अच्छाई का दावा करने से आप क्रोधित हो जाते है | आप कितने भी अच्छे हो परन्तु उसका दावा न करे | दूसरों को उसके बारे में बोलने दीजिए, और उसका ढिंढोरा न पीटे | उदार रहे और उदारता का दिखावा न करे |
आप सब को यह सब करना है और इन सभी बातों को बार बार इकट्ठा हुए इसे अपने बुद्धि में समाना हैं | यहीं सत्संग होता है | सत्संग सत्य, विवेक और आपके भीतर के ज्ञान की संगति होती है | आपका परिचय अपने भीतर के सत्य के होता है और यहीं सत्संग होता है |
१.आपका स्वयं का जीवन ही आपका गुरु होता हैं |
२. जीवन और गुरु अविभाजिनीय है| यह कोई नर्सरी शिक्षक के जैसे नहीं है,कि आप उनसे कुछ सीखा और फिर आप चले गए परन्तु जीवन और गुरु अविभाजिनीय है |
३. जीवन का ज्ञान ही आपका गुरु है | अपने जीवन पर प्रकाश डालने से ज्ञान का उदय होता है |
४.देने वाले ने आपको प्रचुरता के साथ दिया है और वह आपको देता ही रहता हैं और आप उसका अच्छा उपयोग कीजिये | आप अपने कौशल और योग्यता का जितना अच्छा उपयोग करेंगे उतना ही आपको और अधिक प्राप्त होगा |
५. ज्ञान का सम्मान करे | ज्ञान का सम्मान इसलिए करना चाहिये क्योंकि गुरु और ज्ञान अविभाजिनीय है और जीवन और ज्ञान को भी अविभाजिनीय होना चाहिये | कई बार आप अपना जीवन ज्ञान बिना जीते है | फिर गुरु तत्व मौजूद नहीं रहता | और आप गुरु का सम्मान नहीं करते | समझ में आया क्या ?
वह सतगुरू है |
६. जब आप सच्चाई और धर्म की राह पर रहे और उस पर होने का दावा न करे |
सच्चाई और धर्म की राह पर होने का दावा करने से क्रोध, और निराशा आती है और आप किसी और रूप में गलत बन जाते है | यह अच्छाई के साथ भी है | जब आप सोचते है कि ‘ मैं अच्छा हूं फिर आपको लगता हैं कि दुसरे लोग बुरे है, और आप दूसरों को बुरा बना देते हैं | जब आप सोचते हैं कि मैं बहुत अच्छा हूं , तो इससे आप में उदासी आती है | जो लोग सोचते कि वे बहुत अच्छे है वे उन लोगों की तुलना में दुखी होते है जो यह सोचते है कि वे बुरे हैं |जो लोग सोचते है कि वे बुरे है, वे परवाह नहीं करते लेकिन यदि कोई सोचता है कि वह बहुत अच्छा है तो वह यह सोचने लगता है कि उसे क्या हो रहा है | इसलिए यदि आप सोचते है कि ‘मैं अच्छा हूं’ और उसका दावा करने से आप दुखी और निराश हो जाते है | अपनी अच्छाई का दावा करने से आप क्रोधित हो जाते है | आप कितने भी अच्छे हो परन्तु उसका दावा न करे | दूसरों को उसके बारे में बोलने दीजिए, और उसका ढिंढोरा न पीटे | उदार रहे और उदारता का दिखावा न करे |
आप सब को यह सब करना है और इन सभी बातों को बार बार इकट्ठा हुए इसे अपने बुद्धि में समाना हैं | यहीं सत्संग होता है | सत्संग सत्य, विवेक और आपके भीतर के ज्ञान की संगति होती है | आपका परिचय अपने भीतर के सत्य के होता है और यहीं सत्संग होता है |
No comments:
Post a Comment