Tuesday, June 26, 2012

जीवन का सत्य

"जीवन का सत्य
चीन के महान दार्शनिक कन्फ्यूशियस के पास लोग अपनी जिज्ञासाएं लेकर आते रहते थे। एक दिन एक व्यक्ति ने उनसे कहा, 'कुछ दिनों से मुझे एक प्रश्न ने परेशान कर रखा है। उसका उत्तर जानने की चाहत में मुझे आजकल कुछ और सूझता ही नहीं है। कृपया मेरी जिज्ञासा का समाधान करिए।' कन्फ्यूशियस ने कहा, 'पूछो, क्या जानना चाहते हो?' व्यक्ति बोला, 'गुरुजी, मरने के बाद मनुष्य का क्या होता है?' कन्फ्यूशियस यह प्रश्न सुनकर बोले, 'पुत्र, तुम जीवित रहते हुए इस जीवन के बारे में ही जान लो तो यह बहुत बड़ा काम होगा। मृत्यु और उसके बाद की चिंता में अपना समय बेकार क्यों बर्बाद करते हो? जो तुम जीवित रहते हुए जान ही नहीं सकते उसके लिए कम से कम अपने अनमोल मनुष्य जीवन को तो व्यर्थ न गंवाओ।
मृत्यु के बाद क्या....अगर यह जान भी लोगे तो भी मरने के बाद ही वह सब प्राप्त कर पाओगे। किंतु यह जिज्ञासा लिए तुम जगह-जगह घूम कर अपना समय नष्ट कर रहे हो। क्या मात्र यही तुम्हारी जिज्ञासा है, तो व्यर्थ है। यदि इस जिज्ञासा को जानने व सोचने की बजाय तुम मेहनत और लगन से काम करो तो इसी जीवन में बहुत कुछ पा सकते हो। अरे, इस जीवन में अच्छा हृदय रखो, अच्छे विचार रखो। ऐसा करने से तुम्हारे कर्म अच्छे होंगे और परिवार, समाज व राष्ट्र सुखी रहेगा। जीवन में यदि रहस्य न हों तो जीवन का आनंद नहीं है। तुम पहले अपने जीवित व्यक्तित्व का अस्तित्व तो बनाओ, उसकी कोई मिसाल तो कायम करो। इस जीवन का पता नहीं और मृत्यु के बाद का जीवन जानने चले हो।'
कन्फ्यूशियस की बात सुनकर जिज्ञासु लज्जित हो गया। उसने कहा, 'मुझे क्षमा कर दीजिए। मैं व्यर्थ ही भटक रहा था। आज आपने मुझे सही मार्ग दिखाया है। अब मैं इस जीवन में कामयाबी की ओर रुख करूंगा।' वह उसी समय से दूसरों की भलाई के काम में जुट गया।
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